नफरत की राजनीति आने वाली पीढ़ी के लिए भयावह
- रामप्रकाश वर्मा
-Ramprakash Verma
आज भारत देश मे रोजगार, शिक्षा, शोध, स्वास्थ्य और समान अवसरों की जरूरत है हम अपनी विविधता को बचाना चाहते हैं और लोकतंत्र को फलने-फूलने देना चाहते हैं लेकिन इसके उलट आज जिस तरह नफरत की राजनीति चल रही है सभी एक दूसरे को नीचा दिखाना चाहते है बहुत ही चिंतनीय है राजनेता सेवा का मतलब पूरी तरह भूल गए है ऐसी सोच बनती जा रही है कि सांसद, विधायक का मतलब समाज मे अपना वर्चस्व कायम करना है जबकि सही अर्थों में राजनेता वो होता है जो समाज के उत्थान,विकास के लिए पूर्ण रूप से समर्पित रहता था लोकतंत्र का तानाबाना भी इसी पर आधारित है इधर राजनीति का जो अंधा दौर शुरू हुआ है वह आने वाले समय मे बहुत भयावह साबित हो सकता है हालांकि इस पर निकट भविष्य में अंकुश लगता नही दिख रहा है कोई चमत्कार ही हो जाये तो नही कहा जा सकता है आज जिन मूल्यों पर राजनीति की जा रही है न तो कोई सिद्धांत न कोई वचनबद्धता सिर्फ अवसरवादिता का दौर चल रहा है ! इस समय देश मे लोकसभा चुनाव चल रहे हैं
राजनैतिक दलों के नेताओ के बयानों को सुनकर बहुत कोफ्त होती है एक दूसरे के निजी जीवन पर कीचड़ उछालते नजर आते है ये मुद्दा कितना गम्भीर है इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि
देश की विभिन्न भाषाओं के 200 से अधिक लेखकों ने मतदाताओं से आगामी लोकसभा चुनाव में नफ़रत की राजनीति के खिलाफ वोट करने की अपील की है
स्क्रॉल डॉट इन की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय लेखकों के संगठन इंडियन राइटर्स फोरम की ओर से जारी इस अपील में लेखकों ने लोगों से विविध और समान भारत के लिए वोट करने की अपील की इन लेखकों में गिरिश कर्नाड, अरुंधती रॉय, अमिताव घोष, बाम, नयनतारा सहगल, टीएम कृष्णा, विवेक शानभाग, जीत थायिल, के सच्चिदानंदन और रोमिला थापर हैं.
लेखकों ने अंंग्रेजी, हिंदी, मराठी, गुजराती, उर्दू, बंगला, मलयालम, तमिल, कन्नड़ और तेलुगू भाषाओं में यह अपील की है !
अपील पर हस्ताक्षर करने वाले 210 लेखकों ने कहा, आगामी लोकसभा चुनाव में देश चौराहे पर खड़ा है हमारा संविधान सभी नागरिकों को समान अधिकार, अपने हिसाब से भोजन करने की स्वतंत्रता, प्रार्थना करने की स्वतंत्रता, जीवन जीने की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति जताने की आजादी देता है लेकिन बीते कुछ वर्षों में हमने देखा है कि नागरिकों को अपने समुदाय, जाति, लिंग या जिस क्षेत्र से वे आते हैं, उस वजह से उनके साथ मारपीट या भेदभाव किया जाता है या उनकी हत्या कर दी जाती है.
उन्होंने कहा कि भारत को विभाजित करने के लिए नफ़रत की राजनीति का उपयोग किया गया है.
उन्होंने आरोप लगाया, ‘लेखक, कलाकार, फिल्मकार, संगीतकार और अन्य सांस्कृतिक कलाकारों को धमकाया जाता है, उन पर हमला किया जाता है और उन पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है. जो भी सत्ता से सवाल करता है, या तो उसे प्रताड़ित किया जाता है या झूठे और मनगढ़त आरोपों में गिरफ्तार कर लिया जाता है ! लेखकों का कहना है कि महिलाओं, दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा से निपटने के लिए मजबूत कदम उठाने की जरूरत है ! इन लेखकों का कहना है कि नफरत के खिलाफ वोट करना पहला महत्वूर्ण कदम है !
*Ramprakash Verma*
- रामप्रकाश वर्मा
-Ramprakash Verma
आज भारत देश मे रोजगार, शिक्षा, शोध, स्वास्थ्य और समान अवसरों की जरूरत है हम अपनी विविधता को बचाना चाहते हैं और लोकतंत्र को फलने-फूलने देना चाहते हैं लेकिन इसके उलट आज जिस तरह नफरत की राजनीति चल रही है सभी एक दूसरे को नीचा दिखाना चाहते है बहुत ही चिंतनीय है राजनेता सेवा का मतलब पूरी तरह भूल गए है ऐसी सोच बनती जा रही है कि सांसद, विधायक का मतलब समाज मे अपना वर्चस्व कायम करना है जबकि सही अर्थों में राजनेता वो होता है जो समाज के उत्थान,विकास के लिए पूर्ण रूप से समर्पित रहता था लोकतंत्र का तानाबाना भी इसी पर आधारित है इधर राजनीति का जो अंधा दौर शुरू हुआ है वह आने वाले समय मे बहुत भयावह साबित हो सकता है हालांकि इस पर निकट भविष्य में अंकुश लगता नही दिख रहा है कोई चमत्कार ही हो जाये तो नही कहा जा सकता है आज जिन मूल्यों पर राजनीति की जा रही है न तो कोई सिद्धांत न कोई वचनबद्धता सिर्फ अवसरवादिता का दौर चल रहा है ! इस समय देश मे लोकसभा चुनाव चल रहे हैं
राजनैतिक दलों के नेताओ के बयानों को सुनकर बहुत कोफ्त होती है एक दूसरे के निजी जीवन पर कीचड़ उछालते नजर आते है ये मुद्दा कितना गम्भीर है इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि
देश की विभिन्न भाषाओं के 200 से अधिक लेखकों ने मतदाताओं से आगामी लोकसभा चुनाव में नफ़रत की राजनीति के खिलाफ वोट करने की अपील की है
लेखकों ने अंंग्रेजी, हिंदी, मराठी, गुजराती, उर्दू, बंगला, मलयालम, तमिल, कन्नड़ और तेलुगू भाषाओं में यह अपील की है !
अपील पर हस्ताक्षर करने वाले 210 लेखकों ने कहा, आगामी लोकसभा चुनाव में देश चौराहे पर खड़ा है हमारा संविधान सभी नागरिकों को समान अधिकार, अपने हिसाब से भोजन करने की स्वतंत्रता, प्रार्थना करने की स्वतंत्रता, जीवन जीने की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति जताने की आजादी देता है लेकिन बीते कुछ वर्षों में हमने देखा है कि नागरिकों को अपने समुदाय, जाति, लिंग या जिस क्षेत्र से वे आते हैं, उस वजह से उनके साथ मारपीट या भेदभाव किया जाता है या उनकी हत्या कर दी जाती है.
उन्होंने कहा कि भारत को विभाजित करने के लिए नफ़रत की राजनीति का उपयोग किया गया है.
उन्होंने आरोप लगाया, ‘लेखक, कलाकार, फिल्मकार, संगीतकार और अन्य सांस्कृतिक कलाकारों को धमकाया जाता है, उन पर हमला किया जाता है और उन पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है. जो भी सत्ता से सवाल करता है, या तो उसे प्रताड़ित किया जाता है या झूठे और मनगढ़त आरोपों में गिरफ्तार कर लिया जाता है ! लेखकों का कहना है कि महिलाओं, दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा से निपटने के लिए मजबूत कदम उठाने की जरूरत है ! इन लेखकों का कहना है कि नफरत के खिलाफ वोट करना पहला महत्वूर्ण कदम है !
*Ramprakash Verma*
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