ये ईवीएम है जरा संभल के
-रामप्रकाश वर्मा
-Ramprakash Verma
हमारे देश में लोकतांत्रिक चुनाव हमेशा से ही एक जटिल प्रक्रिया रहे हैं। मतपत्रों के युग मे चुनाव के दौरान इस तरह की खबरे आती थी कि बिहार,उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि राज्यो के फला जिले में फला गाँव या कस्बे में मतपत्र पेटी फलाने बाहुबली नेता के इशारे पर लूट ली गयी देश प्रगति की ओर अग्रसर होता गया और चुनाव प्रक्रिया को भी बेहतर और निष्पक्ष बनाने के उपाय भारत के निर्वाचन आयोग की तरफ से समय-समय पर किये जाते रहे विकास की इसी कड़ी में चुनाव आयोग ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन ईवीएम का प्रयोग सन 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद से भारत में शुरू की गई । 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में परिणाम के बाद ईवीएम मशीन पर प्रश्नचिन्ह लगा परंतु निर्वाचन आयोग इस बात को लेकर बहुत गम्भीर नही हुआ लेकिन जब चारो ओर से ईवीएम मशीन में हेराफेरी पर विपक्षियों दलों के नेताओ ने भारतीय जनता पार्टी पर चुनाव जीतने का आरोप लगाने का शोर शुरू हुआ तो अन्ततः चुनाव आयोग ने ईवीएम मशीन की जाँच के लिए एक मौका विपक्षी दलों को दिया लेकिन उसमें भी यह शर्त लगा दी कि सिर्फ एक घण्टा ईवीएम मशीन को गलत या सही सिद्ध करने के लिए दिया जायेगा इस शर्त के लिए पहले से किसी विपक्षी दल के पास कोई तैयारी नही थी शायद इसीलिए आवाम के बीच अपनी फजीहत न हो से बचने के लिए कोई भी विपक्षी दल या उसका नेता निकलकर इस चुनौती को स्वीकार करने के लिए आगे नही आया !उसके बाद फिर आगे कभी इस मुद्दे पर किसी विपक्षी दल ने इसकी गहराई तक जाने में रुचि नही दिखाई हाँ उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 में पुनः भाजपा पर ईवीएम के दुरुपयोग का आरोप लगा था ! ईवीएम मशीन की जाँच को लेकर विपक्षी दलों के नेताओं के अंदर आत्मविश्वास की कमी इस बात को लेकर भी हो सकती है कि वास्तव में ईवीएम मशीन की तकनीक के सही जानकारों का अभाव या फिर चुनाव आयोग द्वारा इस मामले में भरपूर सहयोग न करना भी माना जा सकता है
ईवीएम मशीन का उपयोग भारत में पहली बार 1998 में केरल के नॉर्थ पारावूर विधानसभा क्षेत्र के लिए होने वाले उपचुनाव के कुछ मतदान केंद्रों पर किया गया।
अब 2019 के लोकसभा चुनाव में फिर ईवीएम को लेकर थोड़ी बहुत सुगबुगाहट हुई है लेकिन कोई भी आगे आकर चुनौती के साथ इसको झूठा साबित करने का साहस नहीं कर पा रहा है ! हमने इस संबंध में तमाम उच्चकोटि के आधुनिक तकनीक के विशेषज्ञों से ईवीएम मशीन के सम्बंध में गहनता से उनकी राय ली जो बड़ी स्पष्टता से स्वीकारते हैं कि ईवीएम मशीन में सौ प्रतिशत गड़बड़ी की जा सकती है लेकिन इस तकनीक को समझना हर एक बस की बात नही है ईवीएम मशीन में जो सेटिंग की जाती है उसी के अनुसार वो कार्य करती है जैसे शुरुआत में 200 से 250 वोट नियमानुसार पड़ते है यानी जिस प्रत्याशी के सामने वाला बटन दबाया जाएगा वोट उसी को पड़ेगा उसके बाद उसकी सेटिंग कुछ यूं की जा सकती है कि जिस बड़े दल के प्रत्याशी के पक्ष में वोट डलवाना है जो छोटे दल या फिर निर्दलीय प्रत्याशी होते है उसकी बटन दबाने पर उनको मिलने वाला वोट उस बड़े दल के प्रत्याशी के पक्ष में वोट जायेगा जिसके लिए ईवीएम में पहले से सेटिंग की गई है यानी 200 से 250 वोट पड़ने के बाद छोटे दलों या निर्दलीयों के वोट की बटन सिर्फ जिस बड़े दल के पक्ष में की गयी है वोट उसी को जायेगी ! यानी इसकी तह तक जाना हर एक के बस की बात नही है न ही निर्वाचन आयोग के दरवाजे इन तकनीक के जानकारों के लिए खुले है जिनको भरपूर मौका दिया जाये तो इस बड़ी खामी या बेईमानी का खुलासा कर सकते है ! अब हम बात करते है वीवीपैट मशीन इसमे भी कई समस्याएं है मुख्यतः तो इसकी डिस्प्ले की स्पीड एक तरह से नही है कोई मशीन धीमी कोई बहुत तेज सेट की गई है उधर आपने ईवीएम का बटन दबाया उधर वीवीपैट मशीन के स्क्रीन पर मतदान की डिटेल्स आयी और आप पूरी तरह संतुष्ट वैसे निर्वाचन आयोग ने वीवीपैट मशीन के स्क्रीन पर डिटेल्स की समयावधि 7 सेकंड निर्धारित की है आपने वोट भी दे दिया निष्पक्षता के मानक के लिए वीवीपैट मशीन भी देख ली परंतु जिस बात के लिए इतना तामझाम किया गया है वो शून्य का शून्य ही रहा अब जब सब आपके सामने हुआ तो फिर आप किस पर बेईमानी का आरोप लगायेंगे ! वीवीपैट की टेक्नोलोजी अभी उतनी बेहतर नही है जो भारत जैसे देश के उबड़ खाबड़ रास्तो के द्वारा मतदान केंद्र तक सही सलामत पहुँच सके यह बहुत संवेदनशील मशीन है इसे बहुत संभाल कर ले जाना होता है तथा बूथ में ऐसे स्थान पर रखना होता है जहां इस पर सीधे रोशनी न पड़े ईवीएम मशीन व वीवीपैट मशीन सही काम कर रही है या नही इसके लिए मतदान शुरू होने के पहले मॉक पोल कराया जाता है जिसमें कम से कम 50 वोट डाले जाते है ये पोल मतदान केंद्रों पर उपस्थित सभी प्रत्याशियों के अधिकृत एजेंटो के सामने कराया जाता ईवीएम व वीवीपैट मशीन पोल पर खरी उतरती के बाद सभी एजेंटो से हस्ताक्षर कराकर क्लीन चिट ले ली जाती है ! यहाँ यह स्पष्ट करना अत्यावश्यक है कि ईवीएम या वीवीपैट मशीन में क्या अच्छा है क्या खराबी है इस बात की जानकारी मतदान करा रहे अधिकारियों या कर्मचारियों को नही होती है न ही उनका इससे लेना देना होता है उनका तो मकसद सिर्फ निष्पक्ष चुनाव कराना होता है ! इस मशीन में जो कुछ गड़बड़ होती है वो पहले जहाँ स्टोर रहती है वही से जो कुछ होना होता है हो जाता है ! वीवीपैट मशीन अगर किसी वजह से बंद हो जाती है तो पुन: चालू करने पर सात पर्ची स्वत: कटकर बाक्स में गिरती इसलिए मतदान के दौरान इसको बगैर खराबी के बन्द नही किया जाता है माकपोल के दौरान बाक्स में गिरी सभी 50 पर्ची के पीछे मॅाक पोल का मोहर लगा कर काले लिफाफे में बंद कर रखा जाता है ! भारत की सीधी साधी जनता का दिमाग तो कभी भी इतनी उच्चकोटि की हेराफेरी की तरफ जा ही नही सकता है !
-रामप्रकाश वर्मा
-Ramprakash Verma
हमारे देश में लोकतांत्रिक चुनाव हमेशा से ही एक जटिल प्रक्रिया रहे हैं। मतपत्रों के युग मे चुनाव के दौरान इस तरह की खबरे आती थी कि बिहार,उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि राज्यो के फला जिले में फला गाँव या कस्बे में मतपत्र पेटी फलाने बाहुबली नेता के इशारे पर लूट ली गयी देश प्रगति की ओर अग्रसर होता गया और चुनाव प्रक्रिया को भी बेहतर और निष्पक्ष बनाने के उपाय भारत के निर्वाचन आयोग की तरफ से समय-समय पर किये जाते रहे विकास की इसी कड़ी में चुनाव आयोग ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन ईवीएम का प्रयोग सन 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद से भारत में शुरू की गई । 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में परिणाम के बाद ईवीएम मशीन पर प्रश्नचिन्ह लगा परंतु निर्वाचन आयोग इस बात को लेकर बहुत गम्भीर नही हुआ लेकिन जब चारो ओर से ईवीएम मशीन में हेराफेरी पर विपक्षियों दलों के नेताओ ने भारतीय जनता पार्टी पर चुनाव जीतने का आरोप लगाने का शोर शुरू हुआ तो अन्ततः चुनाव आयोग ने ईवीएम मशीन की जाँच के लिए एक मौका विपक्षी दलों को दिया लेकिन उसमें भी यह शर्त लगा दी कि सिर्फ एक घण्टा ईवीएम मशीन को गलत या सही सिद्ध करने के लिए दिया जायेगा इस शर्त के लिए पहले से किसी विपक्षी दल के पास कोई तैयारी नही थी शायद इसीलिए आवाम के बीच अपनी फजीहत न हो से बचने के लिए कोई भी विपक्षी दल या उसका नेता निकलकर इस चुनौती को स्वीकार करने के लिए आगे नही आया !उसके बाद फिर आगे कभी इस मुद्दे पर किसी विपक्षी दल ने इसकी गहराई तक जाने में रुचि नही दिखाई हाँ उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 में पुनः भाजपा पर ईवीएम के दुरुपयोग का आरोप लगा था ! ईवीएम मशीन की जाँच को लेकर विपक्षी दलों के नेताओं के अंदर आत्मविश्वास की कमी इस बात को लेकर भी हो सकती है कि वास्तव में ईवीएम मशीन की तकनीक के सही जानकारों का अभाव या फिर चुनाव आयोग द्वारा इस मामले में भरपूर सहयोग न करना भी माना जा सकता है
ईवीएम मशीन का उपयोग भारत में पहली बार 1998 में केरल के नॉर्थ पारावूर विधानसभा क्षेत्र के लिए होने वाले उपचुनाव के कुछ मतदान केंद्रों पर किया गया।
अब 2019 के लोकसभा चुनाव में फिर ईवीएम को लेकर थोड़ी बहुत सुगबुगाहट हुई है लेकिन कोई भी आगे आकर चुनौती के साथ इसको झूठा साबित करने का साहस नहीं कर पा रहा है ! हमने इस संबंध में तमाम उच्चकोटि के आधुनिक तकनीक के विशेषज्ञों से ईवीएम मशीन के सम्बंध में गहनता से उनकी राय ली जो बड़ी स्पष्टता से स्वीकारते हैं कि ईवीएम मशीन में सौ प्रतिशत गड़बड़ी की जा सकती है लेकिन इस तकनीक को समझना हर एक बस की बात नही है ईवीएम मशीन में जो सेटिंग की जाती है उसी के अनुसार वो कार्य करती है जैसे शुरुआत में 200 से 250 वोट नियमानुसार पड़ते है यानी जिस प्रत्याशी के सामने वाला बटन दबाया जाएगा वोट उसी को पड़ेगा उसके बाद उसकी सेटिंग कुछ यूं की जा सकती है कि जिस बड़े दल के प्रत्याशी के पक्ष में वोट डलवाना है जो छोटे दल या फिर निर्दलीय प्रत्याशी होते है उसकी बटन दबाने पर उनको मिलने वाला वोट उस बड़े दल के प्रत्याशी के पक्ष में वोट जायेगा जिसके लिए ईवीएम में पहले से सेटिंग की गई है यानी 200 से 250 वोट पड़ने के बाद छोटे दलों या निर्दलीयों के वोट की बटन सिर्फ जिस बड़े दल के पक्ष में की गयी है वोट उसी को जायेगी ! यानी इसकी तह तक जाना हर एक के बस की बात नही है न ही निर्वाचन आयोग के दरवाजे इन तकनीक के जानकारों के लिए खुले है जिनको भरपूर मौका दिया जाये तो इस बड़ी खामी या बेईमानी का खुलासा कर सकते है ! अब हम बात करते है वीवीपैट मशीन इसमे भी कई समस्याएं है मुख्यतः तो इसकी डिस्प्ले की स्पीड एक तरह से नही है कोई मशीन धीमी कोई बहुत तेज सेट की गई है उधर आपने ईवीएम का बटन दबाया उधर वीवीपैट मशीन के स्क्रीन पर मतदान की डिटेल्स आयी और आप पूरी तरह संतुष्ट वैसे निर्वाचन आयोग ने वीवीपैट मशीन के स्क्रीन पर डिटेल्स की समयावधि 7 सेकंड निर्धारित की है आपने वोट भी दे दिया निष्पक्षता के मानक के लिए वीवीपैट मशीन भी देख ली परंतु जिस बात के लिए इतना तामझाम किया गया है वो शून्य का शून्य ही रहा अब जब सब आपके सामने हुआ तो फिर आप किस पर बेईमानी का आरोप लगायेंगे ! वीवीपैट की टेक्नोलोजी अभी उतनी बेहतर नही है जो भारत जैसे देश के उबड़ खाबड़ रास्तो के द्वारा मतदान केंद्र तक सही सलामत पहुँच सके यह बहुत संवेदनशील मशीन है इसे बहुत संभाल कर ले जाना होता है तथा बूथ में ऐसे स्थान पर रखना होता है जहां इस पर सीधे रोशनी न पड़े ईवीएम मशीन व वीवीपैट मशीन सही काम कर रही है या नही इसके लिए मतदान शुरू होने के पहले मॉक पोल कराया जाता है जिसमें कम से कम 50 वोट डाले जाते है ये पोल मतदान केंद्रों पर उपस्थित सभी प्रत्याशियों के अधिकृत एजेंटो के सामने कराया जाता ईवीएम व वीवीपैट मशीन पोल पर खरी उतरती के बाद सभी एजेंटो से हस्ताक्षर कराकर क्लीन चिट ले ली जाती है ! यहाँ यह स्पष्ट करना अत्यावश्यक है कि ईवीएम या वीवीपैट मशीन में क्या अच्छा है क्या खराबी है इस बात की जानकारी मतदान करा रहे अधिकारियों या कर्मचारियों को नही होती है न ही उनका इससे लेना देना होता है उनका तो मकसद सिर्फ निष्पक्ष चुनाव कराना होता है ! इस मशीन में जो कुछ गड़बड़ होती है वो पहले जहाँ स्टोर रहती है वही से जो कुछ होना होता है हो जाता है ! वीवीपैट मशीन अगर किसी वजह से बंद हो जाती है तो पुन: चालू करने पर सात पर्ची स्वत: कटकर बाक्स में गिरती इसलिए मतदान के दौरान इसको बगैर खराबी के बन्द नही किया जाता है माकपोल के दौरान बाक्स में गिरी सभी 50 पर्ची के पीछे मॅाक पोल का मोहर लगा कर काले लिफाफे में बंद कर रखा जाता है ! भारत की सीधी साधी जनता का दिमाग तो कभी भी इतनी उच्चकोटि की हेराफेरी की तरफ जा ही नही सकता है !
बहुत सही बात लिखी
ReplyDeleteशुक्रिया जी
DeleteSir, your views are absolutely right...
ReplyDeleteThanks
Deleteसही है भइया
ReplyDeleteशुक्रिया संजय जी
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